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Tuesday 22 December 2015

खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं Emotional Stories in Hindi


खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं Emotional Stories
in Hindi
मनीष बैंक में एक सरकारी अफसर था।
रोज बाइक से ऑफिस जाता और शाम को घर लौट के आता। शहर में
चकाचौंध तो बहुत रहती है लेकिन जीवन
कहीं सिकुड़ सा गया है, आत्मीयता
की भावना तो जैसे किसी में है
ही नहीं बस हर इंसान व्यस्त है खुद
की लाइफ में, यही सोचता हुआ
मनीष घर ऑफिस से घर की ओर जा रहा
था।
फुटपाथ पे एक छोटी सी डलिया लिए एक
बूढ़ी औरत बैठी थी, शायद
कुछ बेच रही थी। मनीष पास
गया तो देखा कि छोटी सी डलिया में वो
बूढ़ी औरत संतरे बेच रही
थी। देखो कैसा जमाना है लोग मॉल जाकर महँगा सामान
खरीदना पसंद करते हैं कोई इस बेचारी
की तरफ देख भी नहीं रहा,
मनीष मन ही मन ये बात सोच रहा था।
बाइक रोककर मनीष बुढ़िया के पास गया, बोला – अम्मा
1 किलो संतरे दे दो। बुढ़िया की आखों में उसे देखकर
एक चमक सी आई और तेजी से वो संतरे
तौलने लगी। पैसे देकर मनीष ने
थैली से एक संतरा निकाला और खाते हुए बोला – अम्मा
संतरे मीठे नहीं हैं और यह कहकर वो
एक संतरा उस बुढ़िया को दिया, वो संतरा चखकर बोली -
मीठा तो है बाबू। मनीष बिना कुछ बोले
थैली उठाये चलता बना।
अब ये रोज का क्रम हो गया, मनीष रोज उस बुढ़िया से
संतरे खरीदता और थैली से एक संतरा
निकालकर खाता और बोलता – अम्मा संतरे मीठे
नहीं हैं, और कहकर बचा संतरा अम्मा को देता,
बूढी संतरा खाकर बोलती -मीठा
तो है बाबू। बस फिर मनीष थैली लेकर चला
जाता। कई बार मनीष की
बीवी भी उसके साथ
होती थी वो ये सब देखकर बड़ा
आश्चर्यचकित होती थी। एक दिन उसने
मनीष से कहा – सुनो जी, ये सारे संतरे
रोज इतने अच्छे और मीठे होते हैं फिर
भी तुम क्यों रोज उस बेचारी के संतरों
की बुराई करते हो।
मनीष हल्की मुस्कान के साथ बोला – उस
बूढी माँ के सारे संतरे मीठे ही
होते हैं लेकिन वो बेचारी कभी खुद उन
संतरों को नहीं खाती। मैं तो बस ऐसा इसलिए
करता हूँ कि वो माँ मेरे संतरों में से एक खाले और उसका नुकसान
भी न हो।
उनके रोज का यही क्रम पास ही
सब्जी बेचती मालती
भी देखती थी। एक दिन वो
बूढी अम्मा से बोली- ये लड़का रोज संतरा
खरीदने में कितना चिकचिक करता है। रोज तुझे परेशान
करता है फिर भी मैं देखती हूँ कि तू उसको
एक संतरा फालतू तौलती है, क्यों? बूढ़ी
बोली – मालती, वो लड़का मेरे संतरों
की बुराई नहीं करता बल्कि मुझे रोज एक
संतरा खिलाता है और उसको लगता है कि जैसे मुझे पता
नहीं है लेकिन उसका प्यार देखकर खुद
ही एक संतरा उसकी थैली में
फालतू चला जाता है।
विश्वास कीजिये दोस्तों, कभी
कभी ऐसी छोटी
छोटी बातों में बहुत आनंद भरा होता है। खुशियाँ पैसे से
नहीं खरीदी जा
सकतीं, दूसरों के प्रति प्रेम और आदर की
भावना जीवन में मिठास घोल देती है। हाँ
एक बात और – “देने में जो सुख है वो पाने में नहीं”।
दोस्तों हमेशा याद रखना कि खुशियाँ बाँटने से बढ़ती हैं।

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