Translate

Sunday 13 December 2015

माधोसिंह भंडारी गढ़वाल की कथाओं का अहम अंग


पहाड़ को काटकर अपने गांव में सड़क बनाने वाले
दशरथ मांझी आजकल एक फिल्म के कारण चर्चा में
हैं। लेकिन क्या आप माधोसिंह भंडारी को जानते
हैं, जो आज से लगभग 400 साल पहले पहाड़ का सीना
चीरकर नदी का पानी अपने गांव लेकर आये थे। गांव
में नहर लाने के उनके प्रयास की यह कहानी भी
काफी हद तक दशरथ मांझी से मिलती जुलती है।
माधोसिंह भंडारी गढ़वाल की कथाओं का अहम अंग
रहे हैं।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं इस महान योद्धा के
बारे में। योद्धा इसलिए, क्योंकि वह माधोसिंह थे
कि जिन्होंने ति​ब्बतियों को उनके घर में जाकर
छठी का दूध याद दिलाया था तथा भारत और
तिब्बत (अब चीन) के बीच सीमा रेखा तय की थी।
गढ़वाल के इस महान सेनापति, योद्धा और कुशल
इंजीनियर माधोसिंह भंडारी के बारे में गढ़वाल में
यह छंद काफी प्रसिद्ध है....
एक सिंह रैंदो बण, एक सिंह गाय का।
एक सिंह माधोसिंह, और सिंह काहे का।।
(यानि एक सिंह वन में रहता है, एक सींग गाय का
होता है। एक सिंह माधोसिंह है। इसके अलावा
बाकी कोई सिंह नहीं है।)
माधोसिंह के बारे में अपने ब्लॉग 'घसेरी' में विस्तार
से चर्चा करने वाले वरिष्ठ पत्रकार धर्मेंद्र मोहन पंत
कहते हैं कि माधोसिंह का जन्म मलेथा गांव में हुआ
था। (कुछ कहानियों में यह भी कहा गया है कि
उनकी बहन का विवाह इस गांव में हुआ था, जबकि
एक किस्सा यह भी कहता है कि मलेथा उनकी
ससुराल थी)। मलेथा गांव देवप्रयाग और श्रीनगर के
बीच में बसा हुआ है। यह सत्रहवीं सदी के शुरुआती
वर्षों यानि 1600 के बाद की बात है, जब
माधोसिंह का बचपन मलेथा गांव में बीता होगा।
उनके पिता का नाम कालो भंडारी था जो स्वयं
वीर पुरुष थे। यह कह सकते हैं कि माधोसिंह की रगों
में एक योद्धा का खून ही दौड़ रहा था।
शुरुआत करते हैं कालो भंडारी से। यह सम्राट अकबर के
जमाने की बात है। कहा जाता है कि अकबर, कुमांऊ
में चंपावत के राजा गरूड़ ज्ञानचंद और सिरमौर के
राजा मौलीचंद की तपोवन के आसपास स्थित
उपजाऊ भूमि को लेकर गढ़वाल के राजा मानशाह
(1591 से 1610) से ठन गयी थी। ये तीनों इस भूमि में
अपना हिस्सा चाहते थे। राजा मानशाह ने उनका
आग्रह ठुकरा दिया। दिल्ली दरबार और चंपावत को
उनका यह फैसला नागवार गुजरा। दोनों ने युद्धकला
में निपुण अपने दो-दो सिपहसालारों को वहां भेज
दिया। राजा मानशाह ने कालो भंडारी से मदद
मांगी, जिन्होंने अकेले ही इन चारों को परास्त
किया था। तब राजा ने कालो भंडारी को सौण
बाण (स्वर्णिम विजेता) उपाधि दी थी और तब से
उनका नाम सौण बाण कालो भंडारी पड़ गया था।
अब वापस लौटते हैं माधोसिंह भंडारी पर। वह
गढ़वाल के राजा महीपत शाह के तीन बहादुर
सेनापतियों में से एक थे, लेकिन इन तीनों
(माधोसिंह के अलावा रिखोला लोदी और
बनवारी दास) में माधोसिंह ही ऐसे थे, जिन्हें
गढ़वाल और कुमांऊ के योद्धाओं में विशिष्ट स्थान
प्राप्त है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार माधोसिंह
ने कुछ समय रानी कर्णावती के साथ भी काम
किया था।
कहा जाता है कि एक बार जब वह श्रीनगर दरबार से
लगभग पांच मील की दूरी पर स्थित अपने गांव पहुंचे
तो उन्हें काफी भूख लगी थी। उन्होंने अपनी पत्नी
(एक किस्से के अनुसार भाभी) से खाने देने को कहा
तो उन्हें केवल रूखा सूखा खाना दिया गया। जब
माधोसिंह ने कारण पूछा तो पत्नी ने ताना दिया
कि जब गांव में पानी ही नहीं है तो सब्जियां और
अनाज कैसे पैदा होगा? माधोसिंह को यह बात चुभ
गयी। रात भर उन्हें नींद नहीं आयी।
मलेथा के काफी नीचे अलकनंदा नदी बहती थी
जिसका पानी गांव में नहीं लाया जा सकता था।
गांव के दाहिनी तरफ छोटी नदी या गदना बहता
था जिसे चंद्रभागा नदी कहा जाता है। चंद्रभागा
का पानी भी गांव में नहीं लाया जा सकता था
क्योंकि बीच में पहाड़ था। माधोसिंह ने इसी पहाड़
के सीने में सुरंग बनाकर पानी गांव लाने की ठानी
थी। कहा जाता है कि उन्होंने श्रीनगर दरबार और
गांव वालों के सामने भी इसका प्रस्ताव रखा था
लेकिन दोनों जगह उनकी खिल्ली उड़ायी गयी थी।
आखिर में माधोसिंह अकेले ही सुरंग बनाने के लिये
निकल पड़े थे।
सुरंग बनी पर बेटे की जान गयी
माधोसिंह शुरू में अकेले ही सुरंग खोदते रहे, लेकिन
बाद में गांव के लोग भी उनके साथ जुड़ गये। कहा
जाता है कि सुरंग खोदने में लगे लोगों का जोश
बनाये रखने के लिये तब गांव की महिलाएं शौर्य रस
से भरे गीत गाया करती थी। माधोसिंह की मेहनत
आखिर में रंग लायी और सुरंग बनकर तैयार हो गयी।
यह सुरंग आज भी इंजीनियरिंग का अद्भुत नमूना है
और मलेथा गांव के लिये पानी का स्रोत है। इस सुरंग
से माधोसिंह के बेटे गजेसिंह का नाम भी जोड़ा
जाता है। इसको लेकर दो तरह की कहानियां हैं।
पहली कहानी के अनुसार माधोसिंह ने अपनी पत्नी
को सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह गजेसिंह को
उस स्थल पर नहीं आने दे जहां सुरंग खोदी जा रही
थी। एक दिन जिद करके गजेसिंह वहां पहुंच

No comments:

Post a Comment