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Wednesday 16 December 2015

डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल


डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल ( १३ दिसंबर, १९०१-२४
जुलाई, १९४४)
हिंदी में डी.लिट.
की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोध
विद्यार्थी
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल का जन्म तथा मृ्त्यु दोनो
ही पाली ग्राम( पौडी गढवाल)
,उत्तराखंड, भारत मे हुई. बाल्यकाल मे उन्होने "अंबर" नाम से
कविताये लिखी. फिर कहानिया व संपादन ( हिल्मैन
नामक अंग्रेजी पत्रिका) किया. डॉ० बड्थ्वाल ने
हिन्दी में शोध की परंपरा और
गंभीर अधय्यन को एक मजबूत आधार दिया. आचार्य
रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास जी के विचारो
को आगे बढाया और हिन्दी आलोचना को आधार दिया. वे
उत्तराखंड की ही नही भारत
की शान है जिन्हे देश विदेशो मे सम्मान मिला.
उत्तराखंड के लोक -साहित्य(गढवाल) के प्रति भी
उनका लगाव था.
डॉ० पीताम्बर दत्त बडथ्वाल स्वन्त्रत भारत के
प्रथम शोध छात्र है जिन्हे १९३३ के दीक्षांत समारोह
में डी.लिट(हिन्दी) से नवाज़ा गया उनके
शोध कार्य " हिन्दी काव्य मे निर्गुणवाद" ('द निर्गुण
स्कूल आफ हिंदी पोयट्री' -
अंग्रेजी शोध पर आधारित जो उन्होने श्री
श्यामप्रसाद जी के निर्देशन में किया था) के लिये.
उनका आध्यातमिक रचनाओ की तरफ लगाव था जो
उनके अध्यन व शोध कार्य मे झलकता है. उन्होंने संस्कृत,
अवधी, ब्रजभाषा, अरबी एवं
फारसी के शब्दो और बोली को
भी अपने कार्य मे प्रयोग किया. उन्होने संत, सिद्घ,
नाथ और भक्ति साहित्य की खोज और विश्लेषण में
अपनी रुचि दिखाई और अपने गूढ विचारो के साथ इन पर
प्रकाश डाला. भक्ति आन्दोलन (शुक्लजी
की मान्यता ) को हिन्दू जाति की निराशा का
परिणाम नहीं माना लेकिन उसे भक्ति धारा का विकास माना.
उनके शोध और लेख उनके गम्भीर अध्ययन और
उनकी दूर दृष्टि के भी परिचायक हैं.
उन्होने कहा था "भाषा फलती फूलती तो है
साहित्य में, अंकुरित होती है बोलचाल में, साधारण
बोलचाल पर बोली मँज-सुधरकर साहित्यिक भाषा बन
जाती है". वे दार्शनिक वयक्तित्व के धनी,
शोधकर्ता,निबंधकार व समीक्षक थे. उनके निबंध/
शोधकार्य को आज भी शोध विद्दार्थी
प्रयोग करते है. उनके निबंध का मूल भाव उसकी
भूमिका या शुरुआत में ही मिल जाता है.
निम्नलिखित कृ्तिया डॉ० बडथ्वाल की सोच, अध्यन व
शोध को दर्शाती है.
· रामानन्द की हिन्दी रचनाये
( वारानसी, विक्रम समवत २०१२)
· डॉ० बडथ्वाल के श्रेष्ठ निबंध (स. श्री गोबिंद
चातक)
· गोरखवाणी(कवि गोरखनाथ की रचनाओ का
संकलन व सम्पादन)
· सूरदास जीवन सामग्री
· मकरंद (स. डा. भगीरथ मिश्र)
· 'किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल' का
हिन्दी अनुवाद(बच्चो के लिये)
· 'कणेरीपाव'
· 'गंगाबाई'
· 'हिंदी साहित्य में उपासना का स्वरूप',
· 'कवि केशवदास'
· 'योग प्रवाह' (स. डा. सम्पूर्णानंद)
उनकी बहुत सी रचनाओ मे से कुछ एक
पुस्तके "वर्डकेट लाईब्रेरी" के पास सुरक्षित
है..हिन्दी साहित्य अकादमी अब
भी उनकी पुस्तके प्रकाशित
करती है. कबीर,रामानन्द और
गोरखवाणी (गोरखबानी, सं. डॉ०
पीतांबरदत्त बडथ्वाल, हिंदी साहित्य
संमेलन, प्रयाग, द्वि० सं०) पर डॉ० बडथ्वाल ने बहुत कार्य किया
और इसे बहुत से साहित्यकारो ने अपने लेखो में और शोध कार्यो में
शामिल किया और उनके कहे को पैमाना माना. यह अवश्य
ही चिंताजनक है कि सरकार और साहित्यकारो ने उनको
वो स्थान नही दिया जिसके वे हकदार थे. प्रयाग
विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र के प्रोफेसर डा॰ रानाडे
भी कहा कि 'यह केवल हिंदी साहित्य
की विवेचना के लिये ही नहीं
अपितु रहस्यवाद की दार्शनिक व्याख्या के लिये
भी एक महत्त्वपूर्ण देन है.
"नाथ सिद्वो की रचनाये " मे ह्ज़ारीप्रसाद
द्विवेदी जी ने भूमिका मे लिखा है
" नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं का यह
संग्रह कई हस्तलिखित प्रतियों से संकलित हुआ है. इसमें
गोरखनाथ की रचनाएँ संकलित नहीं हुईं,
क्योंकि स्वर्गीय डॉ० पीतांबर दत्त
बड़थ्वाल ने गोरखनाथ की रचनाओं का संपादन पहले से
ही कर दिया है और वे ‘गोरख बानी’ नाम से
प्रकाशित भी हो चुकी हैं
(हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग). बड़थ्वाल
जी ने अपनी भूमिका में बताया था कि
उन्होंने अन्य नाथ सिद्धों की रचनाओं का संग्रह
भी कर लिया है, जो इस पुस्तक के दूसरे भाग में
प्रकाशित होगा. दूसरा भाग अभी तक प्रकाशित
नहीं हुआ है अत्यंत दुःख की बात है कि
उसके प्रकाशित होने के पूर्व ही विद्वान् संपादक ने
इहलोक त्याग दिया. डॉ० बड़थ्वाल की खोज में 40
पुस्तकों का पता चला था, जिन्हें गोरखनाथ-रचित बताया जाता है. डॉ०
बड़थ्वाल ने बहुत छानबीन के बाद इनमें प्रथम 14
ग्रंथों को निसंदिग्ध रूप से प्राचीन माना, क्योंकि इनका
उल्लेख प्रायः सभी प्रतियों में मिला.तेरहवीं
पुस्तक ‘ग्यान चौंतीसा’ समय पर न मिल सकने के
कारण उनके द्वारा संपादित संग्रह में नहीं आ
सकी, परंतु बाकी तेरह को गोरखनाथ
की रचनाएँ समझकर उस संग्रह में उन्होंने प्रकाशित
कर दिया है".

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